धुंध

DAY 14/30/14/JUNE/2020 


धुँध

पांच राही मिले धुंध मैं ऐसे,

पूछा सभी ने एक दूसरे से, "यहाँ कैसे?"


निकले थे घर से अपने सवालों का हल धुंडने,

धुंध मैं यूँ खो गए, क्या पता इतने भटक गए


सभी ने हामी भर दी,

सभी की कहानी कुछ ऐसी ही थी


धुंध जरा भी न हुई कम,

न आगे, न पीछे, जा सकते थे हम

 

फिर बैठे बैठे हमने गप्पे लगाई,

बातों बातों मैं, हर एक की दिक्कत सामने आयी

 

हर एक ने दुसरे को क्या खुप मशवरे दिए,

की अब धूंध मैं भी, रास्ते साफ़ नजर आए

 

आईने जो दूसरों कों दिखाए थे,

उनमें हर एक ने चेहरे, खुद के ही देखे थे  

 

दिल से पाचों ने एक दूसरे को दी दुहाई,

जैसे बंद गाड़ी को धक्का दिया, और शुरू हो गयी

 

सबने देखा अपने इर्दगिर्द,

धुंध साफ़ हो गयी थी,

जाते जाते न जाने

कितने जाले साफ़ कर गयी थी,

कितने जाले साफ़ कर गयी थी |


© - राहुल शिंदे १४/जून/२०२० 


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